Sunday, February 3, 2013

भय


उतरता एक गिद्ध्
दूर ऊंची, चोटी पहाड़ियों से
लहराता, मचलता-
झरनों सा मदमस्त,
हवा की तरंगों पर झूमता
पेड़ों के झुरमुट से
आँख मिचोली करता ।
निगाहें दौड़ाता - चारों तरफ़
पर लक्ष्य कर चुका
अपना सिद्ध ।
धीरे -धीरे, परछाईं उसकी
बढ़ रही जमीन पर
उससे भी बड़ी, भयानक
और
देख जिसे - स्तंभित
नन्हा शशक शावक ।

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दूब की पत्ती

पत्ती - एक दूब की
रात भर बोझल,
बूंद एक - ओस से ।
तरसती रही - सूरज की,
हल्की एक किरण ।
रात ढल - छ्लका सवेरा
हल्का बोझ, दूब का हुआ ।
चढ़ा दिन - हुई दुपहरी
अब झुलस रही-
पत्ती वही दूब की ।

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