Friday, March 18, 2011

संजो रखना

संजो रखना




यह शाम-ढलने से पहले

मैने दी तुम्हें

संजो कर रखने।

बिखेर दी तुमने-इसे

स्याह रात कर

सारे शहर पर।



जब फिर गुजरूं

इस द्वार से, इस डगर से

रोकना मत मुझे

मत पूछना- सफर का हाल।

कहीं ऐसा ना हो

सौंप दूं तुम्हे-इतिहास

और बिखेर दो -सारे गगन में

टिमटिमाते तारे सा।

टिक जाए-रम जाए इतिहास

थिरके - जब भी देखूँ इसको।

यह सोच

यह सोच




हर राह पर फूल मिलें, यह सोच राह चुनी नहीं

फूल मिलते तो साथ खुशबूओं का होता,

कांटे मिले अब, तो पैर के छाले ही सही।



मुरादे मेरी पूरी हो जाए, यह सोच सर तेरे दर पर झुकाया नहीं,

पूरी हसरत एक होती तो जन्म सौ और लेती

बैचैन जिंदगी अब, मेरी अधूरी हसरत के साथ सही।



कल बेहतर हो जाए, यह सोच कल गुजारा नहीं

बेहतर कल देखा कब किसने,

आज गुजर जाये अब एक नये अंदाज से सही।



मंजिल मिल जाए यह सोच कदम बढाया नहीं

हासिल-ए-मन्जिल पर होता जश्न,

जश्न-ए-सफ़र अब, यारों के साथ कुछ देर और सही।



सजी मेहफिलें मिलेंगी, यह सोच दिन सारा गुजारा नहीं

सुनती दबी सिसकियाँ शोर-ए-महफिलों से,

वीराने अब, टिमटिमाते जुगनूओं के साथ सही।



दोस्त बन जाए हर कोई, यह सोच हाथ सबसे मिलाया नहीं

बन जाते दोस्त तो राज-ए-दिल कहते,

गुजरेगी उम्र अब, तमाम सन्गदिलों के साथ सही।

Sunday, March 13, 2011

कितना वक़्त और लगे

कितना वक़्त और लगे

इस राह से, फिर गुजर गया
न जाने मंजिल तक पहुँचने में
कितना वक़्त और लगे

 बुत परश्ती की तमन्ना, फिर दिल में मचली
न जाने इन पत्थरों को, खुदा बनने में
कितना वक़्त और लगे.

 बार बार समुंदर की लहरें, किनारों से टकराती रही
 न जाने एक मोती को किनारे पहुँचाने में
कितना वक़्त और लगे.

फिर अंधेरों ने घेर लिया, मेरे प्यारे वतन को
न जाने इस रात को ढलने में
कितना वक़्त और लगे.

इक नदी प्यास शहर की बुझाने, पहाड़ों से फिसलती रही
न जाने उस समुंदर से, एक बदली उड़ने में
कितना वक़्त और लगे.

 आज फिर चिरागों के जलते ही , मैं डूब जाऊंगा यादों में तुम्हारी
न जाने तुमसे फिर एक, मुलाक़ात होने में
कितना वक़्त और लगे.

चुन लेने दो लावारिस कलियाँ, इन दहकते बागवानों से
न जाने यह मंदिर मस्जिद का, मसला सुलझने में
कितना वक़्त और लगे.

तुम सोचते ही रह गए, और लोगों ने राहे बदल दीं
न जाने लोगों को तुम्हे समझने में
कितना वक़्त और लगे.

पशेमाँ हो गया दिल, इजहारे राज कर इस ज़माने से
न जाने ए दोस्त, तुम्हारे मकां तक पहुँचने में
कितना वक़्त और लगे.

कितने पल बेबस आशाओं पर, तराशी है ज़िंदगी हमने
 न जाने इन वादों को, सूरत-ए-हकीकत देखने में
कितना वक़्त और लगे.

 हर महफ़िल ने देखी, तेरी सूनी पथराई आँखें
न जाने तेरे सवालों का ज़वाब देने में इस जमाने को
कितना वक़्त और लगे.

 हाथ बढाऊं तो तोड़ लाऊँ, चाँद सितारे इस फलक से
न जाने फिर तुम्हारी महफ़िल को, क़दम बढाने में
कितना वक़्त और लगे.


लम्हों में ढल गुजरती ज़िन्दगी, गुज़र जायेगी वक़्त के साथ
 न जाने इन गुजरे लम्हों को समेटने में
कितना वक़्त और लगे
 
इन तुकबंदियों को तुम, ग़ज़ल समझ बैठे "चंचल"
न जाने इन्हें मीर सी तासीर मिलने में
कितना वक़्त और लगे