Friday, March 18, 2011

संजो रखना

संजो रखना




यह शाम-ढलने से पहले

मैने दी तुम्हें

संजो कर रखने।

बिखेर दी तुमने-इसे

स्याह रात कर

सारे शहर पर।



जब फिर गुजरूं

इस द्वार से, इस डगर से

रोकना मत मुझे

मत पूछना- सफर का हाल।

कहीं ऐसा ना हो

सौंप दूं तुम्हे-इतिहास

और बिखेर दो -सारे गगन में

टिमटिमाते तारे सा।

टिक जाए-रम जाए इतिहास

थिरके - जब भी देखूँ इसको।

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