Friday, March 18, 2011

यह सोच

यह सोच




हर राह पर फूल मिलें, यह सोच राह चुनी नहीं

फूल मिलते तो साथ खुशबूओं का होता,

कांटे मिले अब, तो पैर के छाले ही सही।



मुरादे मेरी पूरी हो जाए, यह सोच सर तेरे दर पर झुकाया नहीं,

पूरी हसरत एक होती तो जन्म सौ और लेती

बैचैन जिंदगी अब, मेरी अधूरी हसरत के साथ सही।



कल बेहतर हो जाए, यह सोच कल गुजारा नहीं

बेहतर कल देखा कब किसने,

आज गुजर जाये अब एक नये अंदाज से सही।



मंजिल मिल जाए यह सोच कदम बढाया नहीं

हासिल-ए-मन्जिल पर होता जश्न,

जश्न-ए-सफ़र अब, यारों के साथ कुछ देर और सही।



सजी मेहफिलें मिलेंगी, यह सोच दिन सारा गुजारा नहीं

सुनती दबी सिसकियाँ शोर-ए-महफिलों से,

वीराने अब, टिमटिमाते जुगनूओं के साथ सही।



दोस्त बन जाए हर कोई, यह सोच हाथ सबसे मिलाया नहीं

बन जाते दोस्त तो राज-ए-दिल कहते,

गुजरेगी उम्र अब, तमाम सन्गदिलों के साथ सही।

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