Sunday, March 13, 2011

कितना वक़्त और लगे

कितना वक़्त और लगे

इस राह से, फिर गुजर गया
न जाने मंजिल तक पहुँचने में
कितना वक़्त और लगे

 बुत परश्ती की तमन्ना, फिर दिल में मचली
न जाने इन पत्थरों को, खुदा बनने में
कितना वक़्त और लगे.

 बार बार समुंदर की लहरें, किनारों से टकराती रही
 न जाने एक मोती को किनारे पहुँचाने में
कितना वक़्त और लगे.

फिर अंधेरों ने घेर लिया, मेरे प्यारे वतन को
न जाने इस रात को ढलने में
कितना वक़्त और लगे.

इक नदी प्यास शहर की बुझाने, पहाड़ों से फिसलती रही
न जाने उस समुंदर से, एक बदली उड़ने में
कितना वक़्त और लगे.

 आज फिर चिरागों के जलते ही , मैं डूब जाऊंगा यादों में तुम्हारी
न जाने तुमसे फिर एक, मुलाक़ात होने में
कितना वक़्त और लगे.

चुन लेने दो लावारिस कलियाँ, इन दहकते बागवानों से
न जाने यह मंदिर मस्जिद का, मसला सुलझने में
कितना वक़्त और लगे.

तुम सोचते ही रह गए, और लोगों ने राहे बदल दीं
न जाने लोगों को तुम्हे समझने में
कितना वक़्त और लगे.

पशेमाँ हो गया दिल, इजहारे राज कर इस ज़माने से
न जाने ए दोस्त, तुम्हारे मकां तक पहुँचने में
कितना वक़्त और लगे.

कितने पल बेबस आशाओं पर, तराशी है ज़िंदगी हमने
 न जाने इन वादों को, सूरत-ए-हकीकत देखने में
कितना वक़्त और लगे.

 हर महफ़िल ने देखी, तेरी सूनी पथराई आँखें
न जाने तेरे सवालों का ज़वाब देने में इस जमाने को
कितना वक़्त और लगे.

 हाथ बढाऊं तो तोड़ लाऊँ, चाँद सितारे इस फलक से
न जाने फिर तुम्हारी महफ़िल को, क़दम बढाने में
कितना वक़्त और लगे.


लम्हों में ढल गुजरती ज़िन्दगी, गुज़र जायेगी वक़्त के साथ
 न जाने इन गुजरे लम्हों को समेटने में
कितना वक़्त और लगे
 
इन तुकबंदियों को तुम, ग़ज़ल समझ बैठे "चंचल"
न जाने इन्हें मीर सी तासीर मिलने में
कितना वक़्त और लगे

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