Sunday, February 14, 2010

हमसफ़र .....

फूलों से भरी घाटी-
रंगीन क्यारियों में सजी -
भीनी भीनी महक, हवाओं में तैरती,
और वो अनगिनत तितलियाँ- एहसास कराती
शायद इन्द्रधनुष इन वादियों को
छूने चला आया।

जहाँ तक देखता
कैद कर लेना चाहता
इस रंगीन खुसबू को -
जो लहराती अपनी ही उमंग में
उस बदली के ओट छिपे सूरज को -
जो अब भी आँख मिचोली कर रहा
वो दूर बर्फीली चोटी को -
जो जाने कितने सवाल कर रही

ख्वाब था मेरा शायद,
पर टूटा नहीं, तुमने जो छू लिया-
गहरी नींद से भी जाग कर।
ख्वाब से हकीकत की कड़ी-
बरकरार ।
तुम जो मेरे पास।

जाने कितने गम मेरे
गुमशुदा हो जाते...जब
तुम शामिल हो जाती
एक हलकी सी मुस्कान के साथ।
और घुट जाते बादल,
मंडराने लगते काले साए की तरह
छिन्न भिन्न कर देते - मन के तारों को
जब देखता एक हल्की सी शिकन।

कहीं तुम वो इन्द्रधनुष तो नहीं ?
या फिर बदली से आँख मिचोली करता सूरज -
कितना रंगीन कर दिया मुझे
रह मेरे पास-पास , मेरे साथ-साथ।
कहीं तुम वो झरना तो नहीं ?
झर झर करता निरंतर-
सींच रहा वीरान मंजर, और
अपनी ही कलरव से
छेड़ रहा- न जाने कितने स्वर
इस सुनसान बियाबान जीवन में ।

तितलियों की तरह हवाओं से इतराती-
अपने रंगों को बिखेरा है तुमने ,
हर गीत को मेरे, सुरीले स्वर में ढाला
तुम्हीं ने सजाया, सजीव किया
मेरे हर ख्वाब को।

जब भी खेलती हो अठखेलियाँ,
कभी छिपती, कभी ओझल हो जाती
खुद को समझाता, और तुमसे
सहमता सा पूछ बैठता -
फिर मिलोगे ना ?

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