Wednesday, February 3, 2010

सफ़र में

सूरज उगता नहीं, ढल जाने के लिए
ज़िन्दगी दी नहीं उसने, सिर्फ गुजर बसर के लिए.

माँगना चाहूं उससे तो, बहुत कुछ मिल सकता है
पर लब सी लिए हैं मैंने, अभी कुछ सोचने के लिए.

रूख बदल सकती हैं, ये हवाएं अगर चलाने लगें
रुकी हुयीं हैं तो बस, उस बदली के बरसने के लिए.

भेज रहा है लहरें सागर, साहिल हिलोरें ले रहा
ख्वाब बुन रखें हैं मैंने, हकीकत में ढलनें के लिए.

आसमान ओढ़ लिया मैंने, धरती के बिछोने पर
एक उम्र काफी नहीं, यह सफ़र तय करने के लिए.

हकीकत से कहाँ गुजरती यह उम्र, ख्वाबों का सहारा था
गुलों ने रंगीन बस्ती सजाई है, चमन में खुसबू बिखेरने के लिए.

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