नीमकश
एक ख़याल है , जाने कब तक परवाज चढ़े, एक जूनून है , जाने कब तक रगों में दौड़े...
Wednesday, February 3, 2010
अंदाज़
ताजमहल बनाया मैंने उन पत्थरों को चुन
जो फेंके थे ज़माने ने मोहब्बत पे मेरी
दफना दी नफ़रत, तहखाने में, अब
सुलगते परवाने का अंदाज़ जमाना देखे.
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