Wednesday, February 3, 2010

वहां कौन

सदियों से यही प्रश्न
कौन रहता था वहाँ?
खिलते बनफूल-
लताओं के झुरमुट के बीच.
बाम्बियाँ होड़ लगाती-
जर्जर दीवारों से.

नित नए पाखियों का कलरव
यही सब संजो रखे इसे
पर यह - शांत शाश्वत.

कहानियाँ चली आ रही
पीढ़ी दर पीढ़ी
आशा- विश्वास की डोर
लटकती उस वट वृख्ष पर
जो भी गया उस द्वार तक
आंखे मूँद नतमस्तक
किसी ने कुछ देखा ही नहीं.

सुना है मैंने
सूरज की पहली किरण
गुजरती है यहीं से
हवाएं मचल उठती
एक हल्का सा सपर्श पा कर
सारी विधि यहीं से शुरू
पर निर्वाक.

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