आधी - अधूरी तस्वीर
जाने
कहाँ - चित्रकार ?
आड़ी
- तिरछी लकीरें,
कोई
सीधी- किरण सूरज की हो,
तो
कहीं थरथराती - सागर की लहर कोई।
थमा
गया यह कटोरा,
फ़िर
रहा मैं पर्वत जंगल-
झरनों
से झरता निर्मल जल
भरता
कटोरे में- पर
छलक
जाता कभी तो
कभी
सोख लेता कटोरा।
मुझसे
भी बड़ा- साया मेरा
रंग
सारे बदरंग कर रहा
मैं
तरबतर पसीने में अपने
साये
में अपने सुस्ताऊँ कैसे ?
क्या
इन्हीं आधी अधूरी लकीरों में ही
छिपी
अनगिनत तस्वीरें ?
पर
कहाँ वो चित्रकार?
कहाँ
उसकी तूली?
कहाँ
छिपा रखे रंग अनेक ?
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