अनिल कुमार पुरोहित का जन्म कटक, ओड़िसा में हुआ ।बलांगीर और भुबनेश्वर में पढ़ाई के बाद भोपाल के IIFM से वन प्रबंधन में उपाध्युत्तर डिप्लोमा लिया। कुछ समय ओड़िसा वन निगम में सेवा के बाद ICFAI हैदराबाद में अध्यापकी तथा प्रबंधन दोनों कार्य किये। सम्प्रति टोरोंटो में सरकारी सेवा में हैं।
बचपन से ही कविता में रुची रही है। स्कूल, कालेज की पत्रिकाओं में प्रकाशित लघु कविताओं ने सबका
ध्यान आकर्षित किया । स्वभाव से संकोची होने के कारण उनका पहला संकलन " शहर की पगडंडी" आने में काफी समय लगा।अत्यंत संवेदनशील मन स्वातंत्र्योत्तर भारत का परिदृश्य देख कर चकित हो
जाता है। मानवीय मूल्यों की स्थिति से वह अचकचा जाताहै। लगता है अभी भी हम अपनी परम्परा के बल
पर सही लकीर पकड़ सकते हैं। कवि का यह आशा स्वर अनेक घात प्रतिघातों के बाद उनकी लम्बी
कविता "अन्तःपुर की व्यथा कथा" में उभर कर आया है। उन्हें धर्म और जात पांत, स्थानीयता और
वन्शोद्भवता जैसी चीजें आज के वैश्वीकरण के दौर में अपना अर्थ खोती जान पड़ती हैं। अतः कवि मन नए समीकरण और नए मूल्यों की नींव तलाश रहा है।
बचपन से ही कविता में रुची रही है। स्कूल, कालेज की पत्रिकाओं में प्रकाशित लघु कविताओं ने सबका
ध्यान आकर्षित किया । स्वभाव से संकोची होने के कारण उनका पहला संकलन " शहर की पगडंडी" आने में काफी समय लगा।अत्यंत संवेदनशील मन स्वातंत्र्योत्तर भारत का परिदृश्य देख कर चकित हो
जाता है। मानवीय मूल्यों की स्थिति से वह अचकचा जाताहै। लगता है अभी भी हम अपनी परम्परा के बल
पर सही लकीर पकड़ सकते हैं। कवि का यह आशा स्वर अनेक घात प्रतिघातों के बाद उनकी लम्बी
कविता "अन्तःपुर की व्यथा कथा" में उभर कर आया है। उन्हें धर्म और जात पांत, स्थानीयता और
वन्शोद्भवता जैसी चीजें आज के वैश्वीकरण के दौर में अपना अर्थ खोती जान पड़ती हैं। अतः कवि मन नए समीकरण और नए मूल्यों की नींव तलाश रहा है।
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