दूर क्षितिज के पास से
कोई हाथ हिला रहा मुझे ।
पास अपने बुला रहा
या फिर-
दूर कहीं जा रहा ?
मैं किनारे खड़ा
असमंजस -इस रेतीले टीले पर
देख रहा डगमगाती नाव
हिचकोले ले रही।
लहरें डोलती नन्हीं सी
उस क्षितिज पर
रूप विकराल धर
बिखर जाती रेतीले सागर पर ।
साया मेरा धीरे-धीरे
मचलता सा बढ़ता लहरों पर
छु लेना चाहता उसे ।
शाम ढलने को
चाँद तारे बेताब बिखरने ।
कदम बढ़ाऊँ - पर
कब तक देखता रहूँ
उसे एकटक ।
यह नदी भी तो
चीर रेत को
मिल गयी
सागर से।
यह पर्वत विशाल
कण-कण हो बिखर
जा समोया सागर में।
मंद सुगंध पवन
हर कोने से
अठखेलियाँ खेल रही
लहरों से।
अब पग बढ़ा भी लूं
पर कर रेतीला सागर
मिल आऊँ उससे
अँधेरे में गुम होने से पहले
जो अब तक - शायद
बुला रहा - मुझे ।
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19-11-13
कोई हाथ हिला रहा मुझे ।
पास अपने बुला रहा
या फिर-
दूर कहीं जा रहा ?
मैं किनारे खड़ा
असमंजस -इस रेतीले टीले पर
देख रहा डगमगाती नाव
हिचकोले ले रही।
लहरें डोलती नन्हीं सी
उस क्षितिज पर
रूप विकराल धर
बिखर जाती रेतीले सागर पर ।
साया मेरा धीरे-धीरे
मचलता सा बढ़ता लहरों पर
छु लेना चाहता उसे ।
शाम ढलने को
चाँद तारे बेताब बिखरने ।
कदम बढ़ाऊँ - पर
कब तक देखता रहूँ
उसे एकटक ।
यह नदी भी तो
चीर रेत को
मिल गयी
सागर से।
यह पर्वत विशाल
कण-कण हो बिखर
जा समोया सागर में।
मंद सुगंध पवन
हर कोने से
अठखेलियाँ खेल रही
लहरों से।
अब पग बढ़ा भी लूं
पर कर रेतीला सागर
मिल आऊँ उससे
अँधेरे में गुम होने से पहले
जो अब तक - शायद
बुला रहा - मुझे ।
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19-11-13
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