Wednesday, July 16, 2014

बशीर साहिब- चुनिन्दा शायरी

कोई हाथ भी न मिलाएगा, जो गले मिलोगे तपाक से,
ये नए मिजाज का शहर है, जरा फ़ासले से मिला करो।

उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो,

न जाने किस गली में जिंदगी की शाम हो जाए।

सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जायेगा,
इतना मत चाहो उसे वो बे-वफ़ा हो जायेगा।

हम भी दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम है,
जिस तरफ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जायेगा।

दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे
जब कभी हम दोस्त हो जायें तो शर्मिंदा न हों।

एक दिन तुझ से मिलने जरूर आऊंगा
जिंदगी मुझ को तेरा पता चाहिए।

लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में,
तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलाने में।

पलकें भी चमक जाती हैं सोते में हमारी,
आंखों को अभी ख्वाब छुपाने नहीं आते।

तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था,
फिर उस के बाद मुझे कोई अजनबी नहीं मिला।

जिस पर हमारी आंख ने मोती बिछाये रात भर
भेजा वही क़ाग़ज उसे हमने लिखा कुछ भी नहीं।

कुछ तो मजबूरियां रही होंगी,
यूं कोई बेवफ़ा नहीं होता।

जैसे सर्दियों में गर्म कपड़े दे फ़क़ीरों को,
लबों पे मुस्कुराहट थी मगर कैसी हिकारत सी।

अजीब शख्स है नारा होके हंसता है,
मैं चाहता हूं ख़फ़ा हो, तो ख़फ़ा ही लगे।

देने वाले ने दिया सब कुछ अजब अंदाज से,
सामने दुनिया पड़ी है और उठा सकते नहीं।

मिल भी जाते हैं तो कतरा के निकल जाते हैं,
हाय मौसम की तरह दोस्त बदल जाते हैं।

हम अभी तक हैं गिरफ़्तार-ए-मुहब्बत यारों,
ठोकरें खा के सुना था कि सम्भल जाते हैं।

मुझसे बिछड़ के ख़ुश रहते हो,
मेरी तरह तुम भी झूठे हो।

कभी हम भी इस के क़रीब थे, दिलो जान से बढ़ कर अज़ीज थे,
मगर आज ऐसे मिला है वो, कभी पहले जैसे मिला ना हो।

कभी धूप दे, कभी बदलियां, दिलोजान से दोनों कुबूल हैं,
मगर उस नगर में ना कैद कर, जहां जिन्दगी की हवा ना हो।

No comments:

Post a Comment