सूनी राहें-
टूटी शाखें-
बिखरा घोंसला,
निहारती चिड़िया।
चली गयी,
सर्द हवा-
चीरती जंगलों को।
वीरान नहीं,
मंजर आगे,
बस्ती बंजारों की
बस रही अभी।
टिमटिमाते सितारे
सिहर रहे-बादलों की ओट।
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18/11/2014
18/11/2014
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