Thursday, January 1, 2015

बर्फ़ीली हवाएं



सूनी राहें-
टूटी शाखें-
बिखरा घोंसला,
निहारती चिड़िया।
चली गयी,
सर्द हवा-
चीरती जंगलों को।

वीरान नहीं,
मंजर आगे,
बस्ती बंजारों की
बस रही अभी।
टिमटिमाते सितारे
सिहर रहे-बादलों की ओट।
-------------------------------------------
18/11/2014

No comments:

Post a Comment