दर्शन
30 04 15
कागजों पर खींच लकीरें आड़ी तिरछी
निहोरते अपलक-उभरे कोई तस्वीर
थपथपाते रहे हवाओं को बदहवास
सुनाई दे कोई संगीत।
तस्वीर कोई भी उभरे-बेखबर
सुर कोई भी सजे-अनजान।
लकीरों के बीच से -उतार लेते तस्वीर
खामोशियों से ही-सजा लेते संगीत।
अपनी ही तूली से अपने ही रंग सजाते
अपने ही शब्दों से अपनी ही तरंग।
कुछ वक्ता तो कुछ श्रोता तो कुछ दर्शक
इन्हीं का बना जमघट।
30 04 15
कागजों पर खींच लकीरें आड़ी तिरछी
निहोरते अपलक-उभरे कोई तस्वीर
थपथपाते रहे हवाओं को बदहवास
सुनाई दे कोई संगीत।
तस्वीर कोई भी उभरे-बेखबर
सुर कोई भी सजे-अनजान।
लकीरों के बीच से -उतार लेते तस्वीर
खामोशियों से ही-सजा लेते संगीत।
अपनी ही तूली से अपने ही रंग सजाते
अपने ही शब्दों से अपनी ही तरंग।
कुछ वक्ता तो कुछ श्रोता तो कुछ दर्शक
इन्हीं का बना जमघट।
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