Saturday, October 15, 2011

auron kee kalam se

किसीको घर से निकलते ही मिल गयी मंजिल
कोई हमारी तरह उम्र भर सफ़र में रहा.


मणि मानिक महंगे किये,
सहंगे त्रीन ,जल और नाज,
तुलसी एते जानिये,
राम गरीब नवाज़.

तुलसी पावस के समय ,
 धरी कोकिल मौन.
अब तो दादुर बोलिएँ ,
हमें पूछिए कौन.


तुम हमारे किसी तरह ना हुए
वरना इस दुनिया में क्या नहीं होता.
 तुम मेरे पास होते हो गोया
जब दूसरा नहीं होता.


बंदऊँ संत असज्जन चरना.
दुःख प्रद इनके  बीच कहू बरना.
 बिछुरत एक प्राण हरि लेहीं.
मिळत एक दुःख दारुन देहीं.

वो हमारी बेबसी का मज़ाक उड़ाते चले गए,
और एक हम थे कि मुस्कुराते चले गए.
सरे बाज़ार बिक रहा था प्यार हमारा
और एक वो थे कि हमारी कीमत गिराते गए.

उन्हीं रास्तों ने जिन पर तुम कभी साथ थे मेरे
मुझे रोक रोक पूछा तेरा हमसफ़र कहाँ है.


औरों से कहा तुमने औरों से सुना तुमने
कभी हमसे कहा होता कभी हमसे सुना होता.

ठुकरा कर उसने कहा मुस्करा दो
मैं हंस दिया, आखिर सवाल उसकी खुशी का था.
मैंने खोया वो जो मेरा था ही नहीं
उसने खोया वो जो सिर्फ उसी का था.

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