नीमकश
एक ख़याल है , जाने कब तक परवाज चढ़े, एक जूनून है , जाने कब तक रगों में दौड़े...
Monday, October 10, 2011
अंत
पल- पल ,
तिल- तिल,
घुट- घुट कर -
मरते देखा है
इसी चौखट पर,
तुम्हारे,
इस सच को.
कैसे कह सकते हो
तुम-
क्यों दिलासा देते हो
मुझे बार-बार,
इस पुतले को सदियों में ,
जलाकर एक बार
अंत हो गया - पाप का.
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