एक ख़याल है , जाने कब तक परवाज चढ़े,
एक जूनून है , जाने कब तक रगों में दौड़े...
Thursday, June 4, 2015
दो लाईना
ये किस मुकाम पर आ गयी ज़िंदगी मरने से ज्यादा जीने को डर लगता। दरिया बन समुन्दर की चाहत में पत्थरों से जाने क्या निकले, समुन्दर से मिले तो उसे पत्थरों में ओझल होते देखे।
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