Tuesday, February 11, 2014

पहेली

काका मामा यासा रामे
हामा मारा दारा गासा
लापा सेना पाशा सामा
यानीष्टोमा दामा दारा।
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रामानाथा भारा सारा
धारा बारा गोपाधारा
धारा धारा भीमाकारा
पाराबारा सीतारामा।
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संस्कृत में पारंगत मित्रों के  लिए :
ऊपर लिखित पंक्तियाँ काफी सालों से रह रह कर परेशान कर रही हैं। अब बरदाश्त के परे। पहली चार पंक्तियाँ कंकण बन्ध रामायण कहलाती हैं। जिस पंडित ने ये लिखी उसने राजा से कहा की हर एक शब्द से शुरू कर आप वापस उसी शब्द तक पहुंचेगे तो एक श्लोक होगा और ऐसे 32 श्लोक इन चार पंक्तियों से बनेंगे। अब आप हर श्लोक को उल्टा पढेंगे तो 32 और श्लोक होंगे। इन पूरे 64 श्लोकों में पूरी रामायण वर्णित होगी।
उसी तरह एक दूसरे पंडित ने दूसरी चार पंक्तियाँ लिखीं। उसके अनुसार आप हर शब्द के  स्वर और व्यंजन से श्लोक लिखेंगे तो  128 श्लोक होंगे जो रामायण का वर्णन करेंगे। इसे उसने महाकंकन रामायण का नाम दिया।
मुझे अभी तक एक श्लोक भी नहीं मिला। यदी कोई फेसबुक के मित्र अपना ज्ञान कौशल से कुछ पंक्तियाँ बनायें और अर्थ निकालें तो अनुकंपा होगी। 
यह श्लोक मैंने कवि सम्राट उपेन्द्र भंज के  ऊपर लिखी गयी पुस्तक " भंज समीक्षा' से ली है। इसके लेखक स्व गौरी कुमार ब्रह्मा हैं, जो भंज साहित्य के प्रकाण्ड विद्वान थे। उपेंद्रभंज शब्द चातुरी में माहिर थे। उन्होंने एक कविता ऋतू वर्णना पर लिखी। कहते हैं, यदि उस कविता के  हर वाक्य से पहला  शब्द निकाल दें तो ऋतू बदल जाती हाई। वैसे ही मझला शब्द निकाल दें तो फिर एक और ऋतू का वर्णन होता है। इस तरह उनहोंने सारी ऋतुओं का वर्णन एक ही कविता में कर डाला। उन्होंने एक काव्य लिखा जिसमें कोई मात्रा नहीं थी। एक और काव्य "वैदेही विलास " लिखा जिसमे हर पंक्ति का पहला शब्द 'व' से शुरू होता है। उन्होंने उड़िया में ही अपनी रचनाएँ लिखीं पर संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे। इसी कारण शब्द चातुरी में उनका कोई सानी नहीं।
पर ऊपर लिखे दोनों श्लोक संस्कृत में है। यदि इसके बारे में कोई और सामग्री है तो अवस्य बताएं। 

1 comment:

  1. साल २००५ से मै इस श्लोक के बारे में सुना था. आपका संदर्भ मिला. धन्यवाद.

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