Wednesday, February 5, 2014

जंगल

जंगल की तलाश-
एक चाह थी उसको।
पूछता फिर रहा
राह में, जो भी मिला।
अजीब से - रास्ते सभी बताते
फिरता रहा उन्हीं पर
तय करता गया-
जाने कितने ताल तलैया
नदी, पहाड़, रेगिस्तान।
फिर अचानक - घड़ी एक
नज़र  आया- झुरमुट पेड़ों का।
खुद बी खुद बढ़ते गए कफाम
उस ओर।
रास्ता तो कोई ना था
ना कोई हमसफर।
बीहड़ बीयाबान जमीन
और बढते कदम।
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क्या यही है वो जंगल
तलाशता रहा मन- सदियों।
सुनसान, भयावह कभी
तो रमणीय, मद्मस्य कभी।
यहाँ भी कोई राह नहीं,
कुछ पगडंडीयां दिखतीं
पर कुछ दूर जा गम हो जातीं।
कहीं सरसराहट तो कहीं गूँज
आवाजें अजनबी चेहरों से।
अति अद्भुत चहूं ओर
विविधता जंगल की
देख मंत्रमुग्ध।
अति विचित्र जानवर यहाँ
कोई रेंग रहा, कोई उड़ रहा,
कोई उछल रहा, कोई भाग रहा।
विचित्र जंगल, विचित्र उसके वासी
भयभीत हो- चाल तेज़ कर ली।
कई और देखे जिनमें
कोई गुनगुना रहा,
कोई रूदन करण कर रहा
तो कोई अनर्गल कहे जा रहा।
क्या ये सब भी
तलाशते रहे - जंगल।
भूख लगती तो फल फूल खाते
या फिर शिकार कर कच्चा चबा जाते
पानी पी झरनों का- प्यास अपनी बुझाते।
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पर जंगल कहाँ?
ये पेड़, पत्ते , झरने, पहाड़,
जल थल और गगन विशाल।
इन्हीं में कहीं जा बसा
या ये सब बस बना रहे-
जंगल।
अब आ पहुँचा इस जंगल में
तलाश मंजिल की ख़त्म हुई।
अब -
एक नई तलाश, नई मंजिल
मन के कोने से उभर रही ।
गुजर पार करे कैसे-
यह जंगल
जो कभी अपना सा लगता
तो कभी पराया।
कभी हंसाता, तो कभी डराता
कभी शातं करता
तो कभी विचलित।
अब घुटन सी होने लगी,
मन बेचैन -
जो मनःस्तिथी - जंगल से पहले
वही जंगल में भी आ पहुंची।
शायद शांत हो मन
यहाँ से निकल बाहर।
किसे है होश जो बतलाये
राह सही और सटीक।
सब चल रहे सूनी सुनाई राहों पर
कहाँ जाती ये पगडंडीयां-
किसे मालूम।
कोई लौटे - तो बताये।
सब भटक रहे - दिशाहीन
ना सुन रहा कोई
ना बोल रहा कोई।
घुटने लगा दम उसका
बैचैनी ने बढ़ा दी छटपटाहट।
जो अभी- अभी रहा
सुंदर, रमणीय
हो रहा वही भयावह, विकराल।
सब कुछ मिलजुल आभाष
अजीब सा दे रहे।
इसी अनुभूती को तरसता रहा
सदियों मन उसका।
सागर होता तो लहरें उछाल
फ़ेंक देता किनारे।
यह तो जंगल
फिर कैसे लगे किनारे?
किससे पूछे, कौन बताये
सब मदमस्त।
समय एक ऐसा फिर आया
खुद को जंगल के  कगार पर पाया
जैसे जंगल उसने पाया
वैसे आज उससे बाहर आया।
शांत मन को करने की चाह
विकल हो रहा- मन उसका।
अजनबी एक बैठा यहाँ
पूछ बैठा उससे यकायक
कैसा रहा सफ़र जंगल का
ढूंढ रहे थे जिसे विकल
पाकर उसे ज्यों बेकल।
सांस लंबी भरी एक
अज़नबी को सारा हाल सुनाया
जो दूर से दिख रहा सुहाना
पास आकार बना भयावक।


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