Tuesday, June 17, 2014

सुलगती जिन्दगी...

मन के ख्यालों से
उठता है धुँआ-
सब कुछ कर देता धूमिल।
सूझने समझने की कोशिशे
घुट सी जाती।

इसी धूएँ की परत दर परत ऊपर
बिखरे हैं बादल सपनों के-
उजले सफ़ेद जगमगाते से दिखते
जब भी किरण आशा की
छन कर आती इनसे।

बरसेंगे बादल, यकीन है मुझे-
चल रही मंद सुगंध
मेरी चाहत की हवा।
छट जाएगा धुँआ
दूर हो जायेगी बेचैन घुटन।

थोड़ा सा इन्तजार,
थोड़ा सा सब्र
भर रहा हूँ साँसों से
अपने इस-सुलगते जीवन में।
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09जून 14

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