Tuesday, June 17, 2014

अधूरा स्वप्न

एक अधूरा स्वप्न, हो तुम.
साथ साथ मेरे - फिर भी 
रोम रोम मेरे सिहर रहे.
मैं जहां भी रहूँ - जो भी करूं 
संग मेरे - रहते हो तुम.

अभी अभी  - जो छू कर गयी 
अभी अभी - जो छल कर गयी 
नित नए रंगों में ढल, आते - जाते 
पल पल नूतन - स्पर्श हो तुम. 

कोई मेरे आगे, कोई मेरे पीछे
भीड़ में मैं , मुझमें भीड़ 
कोई कहता कुछ , कोई सुनता कुछ
मन का मेरे शांत - कोलाहल हो तुम.  

ना मैं तुमसे अछूता , ना तुम मुझसे 
परे परे रहकर भी , एक दूसरे को निहोराते 
सब कुछ संजोया मेरा- बिखर सा जाता 
दर्पण में छिपा , एहसास मेरा हो तुम.
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