Tuesday, June 17, 2014

उसके लिए-

वो जानता - कहाँ सजाना मुझे
शब्द एक मैं उसके लिये -
नित नए भावों में सजा मुझे
कविता अपनी निखार रहा ।

तलाश कर रहा वह - एक नयी धुन
स्वर एक मैं, उसके  लिये -
साज पर अपने तरंगों में सजा
कविता में प्राण नए फूंक रहा ।

देखा है मैंने उसे - खींचते आड़ी तिरछी रेखाएं
रंग एक मैं,  उसके लिए -
तूली पर अपनी सजा
सपनों को आकार इन्द्रधनुषी दे रहा ।

लहरों सा बार बार भेजता मुझे
कभी सीपी देकर, तो कभी मोती
सब कुछ किनारे धर बेकल सा मैं 
बार बार लौट - समा जाता उसमें ।

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