हर शहर की
अपनी ही गलियाँ-
घरों के बीच से गुजरती
गुम हो जाती जंगलों में।
हर नदी के
अपने ही जंगल
पहाड़ों स ढलते हुए
खो जाते सागर किनारे।
हर सागर की
अपनी ही लहरें
उमड़ती घुमड़ती गोद से उठती
ओझल हो जाती बादलों बीच।
हर आसमान के
अपने ही बादल
हवाओं के परों पर लरजते
बिजली से
शहरों पर बिखर जाते
No comments:
Post a Comment