नीमकश
एक ख़याल है , जाने कब तक परवाज चढ़े, एक जूनून है , जाने कब तक रगों में दौड़े...
Friday, December 26, 2014
अब नहीं
वाईस मैखाने में जाता नहीं,
पता खुदा का कोई और नहीं।
कहते हैं किस जर्रे में वो नहीं
फिर भी हमको यकीन नहीं।
झुकता सर सजदे में अब नहीं
कंधों पर अपने फिरते, आरजू कुछ नहीं।
आयेंगे अभी, पर लौटे अब नहीं
भरोसा रखते सब पर ऐतबार अब नहीं।
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