Friday, December 26, 2014

हिमशैल

हिमशैल एक
यायावर सा, अनंत सागर में
जाने कब से बहे चले जा रहा।
अगिनत तूफानों संग
इसने भी ली मदमस्त हिलोरें ।
तपती, झुलसती गर्मी
ठिठुरती, कंपकंपाती सर्दी
नहीं कर सकी विचलित इसे।
बस एक लकीर बुलबुलों की
बनाता जाता - पर
अगले ही पल-
सागर उन्हें मिटाता जाता।
जूझ एक अजीब सी
सागर के संग
नित नए सूरज
नित नए रंग।
इसी सागर ने अपने ही अन्दर
छिपा रखा है अस्तित्व इसका
और यह
शनै शनै घुलता जाता
इसी सागर की गोद।

No comments:

Post a Comment