सब कहते हैं-
यह लड़ाई धर्म की है।
फिर हर बार, हर तरफ
आदमी ही क्यूँ मर रहा?
गूँज रही हर दिशा
उखाड़ देंगे सत्ता झूठ की।
पर हर बार क्यूँ
उजड़ जाती - घास फूस की झोंपड़ियाँ।
कोई कहता मुझसे
चुप हो जाओ- अभी सुनोगे सुमधुर संगीत।
पर क्यों सुन नहीं पा रहा - वह
इस सन्नाटे में - वो सिसकियाँ।
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