बाँट दिया इस नदी ने हमें
कितनी बार कोसा - बहते पानी को
पर कोई असर नहीं।
सूख जाती जब,
मिल लेते- कुछ प्रहार
फिर - वही बिछुड़न।
आज - देखी सूखी नदी
झूम उठी लहर- खुशी की।
देखा - भरी पड़ी नदी
रेत और पत्थरों से ।
उधार ले कर- आ रही
पहाड़ों से पत्थर ।
पर क्यों?
खुद को ही सोख रही !
आँसूं तो नहीं -बहते जा रहे
इसकी धारा में
असमंजस में हम दोनों ।
मिलाना चाहती -हमें
कभी सोचा ही नहीं
बस कोसा है इसे।
अब महसूस हुआ -
इस मिलन की बेला में
नदी का यह दर्द,
नदी का या प्रयास।
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२७/०३/२०१९
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