Sunday, April 21, 2019

नदी का दर्द


बाँट दिया इस नदी ने हमें
कितनी बार कोसा - बहते पानी को
पर कोई असर नहीं।

सूख जाती जब,
मिल लेते- कुछ प्रहार
फिर - वही बिछुड़न।

आज - देखी सूखी नदी 
झूम उठी लहर- खुशी की।

देखा - भरी पड़ी  नदी
रेत और पत्थरों से
उधार ले कर- रही 
पहाड़ों से पत्थर

पर क्यों?

खुद को ही सोख रही !
आँसूं तो नहीं -बहते जा रहे 
इसकी धारा में
असमंजस में हम दोनों
मिलाना चाहती -हमें 


कभी सोचा ही नहीं
बस  कोसा है इसे।
अब महसूस हुआ -
इस मिलन की बेला में 
नदी का यह दर्द,
नदी का या प्रयास।
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२७/०३/२०१९ 

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