Sunday, April 21, 2019

व्यवसाय


मुझे क्या मिला?
मैंने क्या संजोया?
मुझसे क्या छीना?
कशमोकश में रहा हर पल जीवन
उहापोह में लुटा चैन।
पल-पल में ढल-बिखर गया समय
उड़ा ले गयी आँधी - पत्ते शाखों से
नयी जमीन पर पनपते कुछ बीज
इन्ही पत्तों के कोख में।
सूरज के चढ़ते - ढलते
सुख पा लेती दूब - इन्हीं की
बदलती परछाई तले।
ऊपर गगन विशाल से
टपका दो बूँद पानी- बन जाते नाले
मिल जाते नदियों संग
एकजुट, एकलय में बहती जातीं
मिलने अपने सागर से।
सागर किनारे कोई - दूब तक नहीं पनपती
बस सीपी उंडेल देता
छिपाये रखता मोती, अपने गर्भ।
बस रेत ही रेत- दूर दूर तक
खारापन सारी हवाओं में
दो बूँद ऊपर जा बदली बन तैरता।

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