Sunday, April 21, 2019

kavita


1
रात भर हुई थी बारिश
शायद हवा भी तेज चली होगी।
गीली है घास, टूटी हुई कुछ टहनियाँ
बिखरे इधर - उधर पत्ते
ढाँप रखे बीज, कोख में अपने।
समय कुछ लगेगा पनपने इन्हें
बारिशों, हवाओं, किरणों का दौर
देखना इन्हें बाकी।
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2
सब कुछ जला देती -यह आग
गीले को सूखा कर देती
सूखे को राख-
कुछ भी नहीं रहता अछूता इससे।
फिर बहा ले जाती राख यह धारा
तरंगों में इसके डोलती- हिचकोले लेती
किनारों पर आने मचलती।
पत्थरों से टकरा-मझधार में गम हो जाती।
3
सब कुछ तैयार कर देती-
पनपने, संवरने, बिखरने
एक रंग से ढल जाते दूसरे रंग
सुबह की अठखेली सी लाली
हो जाती दुपहर की कड़कती धूप
फिर शाम की अलसाई लाली।
शाम के ढलते बिखर जाती चाँदनी
समेटने स्याह काली रात।
लगता सब इन्तजार में
बिखरने से ज्यादा बदलने के।

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