बंद कर लो आंखे तो
हर ओर से तैरती आती
आवाजें-
जिस्म को छूकर फिसल जाती।
हर तरफ गुट बनाए
जुटे हुए लोगों की
मिली जुली आवाजें
इर्द गिर्द नाचती मेरे ।
गुँथ जाती आपस में
मुझ तक पहुंचते ।
आंखें मूँद सब महसूस करता
पर समझ से परे ।
ढूंढ रही हो मधुमक्खी
लाशों के ढेर में फूल नए।
एक आग सी लगी जंगल में
धुएं में घुटा जा रहा
रुक-रुककर लपक सी उठती
तेज हवा पर लहराती डोलती
बेतहाशा भागते जानवर
धुँए के बादल देख रुक जाते
बरसेगा पानी
पर बरसती राख।
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