Sunday, April 21, 2019

रुखसती


पक गई बालियाँ गेहूं की
रंग लाई मेहनत किसान की
पसीने से अपनी सींचा जमीन
अब गया वक्त
काट इन्हें  - संजोने
कुछ अगले वर्ष उगाने
कुछ बच्चों के पेट पोषने
मुस्कुराता, हवा संग झूमता
खेत की मुंडेर पर खड़ा किसान।
खिल रहे फूल बगिया के हर छोर
महका रहे बिखेर अपनी खुशबू
एहसास हर कांटे की चुभन का
भूल जाता माली
देख सजी रंग - बिरंगी बगिया।
तुम क्यों खड़े उदास
लिए हाथ में गंगाजल।
मुस्कुराते झूमते करो मुझे विदा
छोड़े जा रहा अपनी खट्टी मीठी यादें
साथ गुजारे सुनहरे पल
संजो रखना अपने पास।

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