एक दीवार-घनी अंधियारी
सरकती आ रही - खनखनाती।
छिप गए, कुछ -
भयभीत, लाचार बन।
कुछ - तैयारी में
विनाश का विनाश करने तत्पर।
कुछ- शांत, नीरव, अनभिज्ञ-
निर्लिप्त नशीले स्वप्न में।
दूर से, दिख रहा
बढ़ता घना अंधियारा -
अपनी ही धुन में, गहराता हुआ ।
लपलपाती जीभें,
निगलने को।
अंगारे उगलती, तीसरी आँख-
भस्म करने।
सोच सबकी-एक,
फिर रौंदे जाएंगे
पेड़, पहाड़, नदी, नाले,
बस जाएगी वीरानी ।
अजीब सी गूँज,
कानों को सबके बींधती।
बस दुबक देख रहे, सहमते से -
जाने कब गुजरे यह बदहवासी।
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05Jan 2019
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