Sunday, April 21, 2019

राजनीति



एक आस-घोर तिमिर में
बस तारे रहते टिमटिमाते।
खिली खिली धुप-
मंद, सुगंध-मलयगिरी की पवन
इंतज़ार सभी को-
इस उमस बोझिल रात।
काले भयावह नाग सी बंधी रस्सी
जाने कहाँ इसका छोर
सभी चले जा रहे- बाँधे आँखों पर पट्टी
नगाड़ों की ताल पर-धर कदम।
निगल जाती रस्सी मुसाफिर
कोई फिसल विलीन खड्ड में
सब बेखबर-पर तत्पर।
बस बदली तो-धुन नगाड़ों की
बाकी सब यथावत।

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