Sunday, April 21, 2019

शिक्षा


घात-प्रतिघात अनवरत
चलते रहे तीर
जाने कहाँ लक्ष्य
सपनों में भी रखे बेचैन।
घुलता रहा एक नशा
बस गया रग रग में।
शिक्षा की आड़ में
बना दिया सबको प्रतिद्वंदी
जूनून सा हो रहा जीतने का
सीखने का कब रहा माहौल?
जो हार जाता-उग्र होता
जो जीत जाता - उग्रतर नज़र आता।
यम, नियम, संयम का सहारा ले
कुछ चढ़ते रहे रेत के टीले
तो कुछ रेंगते रहे दलदली सतह।
जो भी आया हथेलियों के बीच-
छोड़,लपकते रहे आस अधूरी।
अब तक खाली की खाली
रह गयी मुठ्ठी सबकी।

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