Sunday, April 21, 2019

सूनी आवाजें


मत खोलो दरवाजा
हिलो मत यहां से
जाने कौन सा झोंका हवा का
जाए घर के अंदर।
जाने कौन दाखिल हो
मचा दे बवाल।
बंद रखो दरवाजा
बंद कर दो खिड़कियाँ
खींच दो परदे भी
सूरज की किरण हो
या चाँद की रौशनी
आने मत दो अंदर।
कितने जतन से
कितने सालों में
बनाया, सजाया, सँवारा
इस घर को।
क्यों कर देना चाहते सब कुछ
पल में तीतर बीतर।
सुन रही पदचाप किसकी
कौन उतर रहा सीढीयों से नीचे
कौन है जो बिखेर रहा संगीत सुमधुर
इस कमरे से बाहर निकलूँ
या दुबका रहूँ इसी बिस्तर में।
अब क्यों हो गए चुप
क्यों नहीं  सूझा रहे, हल कोई।
फिर छल दिया तुमने
फिर छीन ले रहे मति मेरी
इसी तरह के देकर तर्क कुतर्क
क्यों हो जाते - अक्सर खामोश?

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