इस नदी के साथ
कैसे चलूँ -
नया मोड़ लेकर
चल पड़ती आगे|
इस पवन के साथ
कैसे बहूँ-
बदल देती चाल अपनी
न जाने किस धुन में |
इस पर्वत पर
कैसे आगे बढ़ूँ
हर कदम पर बिखेर देता
नुकीली, सपाट चट्टानें |
नदी, पवन , पहाड़
सब से निराला
मन मेरा- जाने कैसा|
बार -बार बिजली सा कौंध
उकसाता मुझे-
बहकाता मुझे |
मैं भी
चल पड़ता
कभी- अकेला तो
कभी- साथ साथ |
-------------
No comments:
Post a Comment