Sunday, April 21, 2019

साथ-साथ


इस नदी के साथ
कैसे चलूँ -
नया मोड़ लेकर
चल पड़ती आगे|

इस पवन के  साथ
कैसे  बहूँ-
बदल देती चाल अपनी
जाने किस धुन में |

इस पर्वत पर 
कैसे आगे बढ़ूँ
हर कदम पर बिखेर देता
नुकीली, सपाट चट्टानें |

नदी, पवन , पहाड़ 
सब से निराला 
मन मेरा- जाने कैसा
बार -बार बिजली सा कौंध 
उकसाता मुझे-
बहकाता मुझे |

मैं भी
चल पड़ता 
कभी- अकेला तो 
कभी- साथ साथ |
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