Sunday, April 21, 2019

महक



महक मेरे मन की -
अब तक छिपी हुई -
सीप में मोती सी.
कभी निकलने को बेकल
कभी डरी सहमी सी-
गुमसुम.
मुठ्ठी में क़ैद -
एक जुगनू बिखेरता
चमक अपनी.
बेखबर क़ैद से-
अनजान दिन से .
जाने कहाँ तक
फैले खुशबू.
जाने कब तक
रहे चमक.
ना रोके रुकती खुशबू
ना बांधे बंधती चमक.
कोई होड़ नहीं खुशबूओं में
मदमस्त बहती 
तरंगों पर हवाओं
के साथ छिप जाती
कलि में फिर
फूल से बिखरती .
चमक चमकती पेड़ों पर
अनजान अपनी ही
पहचान से.
महक मेरे मन की
बेकल-छिपी हुई...
बेकल बिखरने को ..

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