Sunday, April 21, 2019

पापा



पापा -वह उंगली आपकी
उचक पकड़ती थी नन्हीं हथेलियां हमारी
बहती थी इनमें अमृत की धारा
सभ्यता, संस्कृति और प्रेम की
सींच रही अब भी जीवन हमारा।
पापा - वह आंखें आपकी
आज भी दीये सी चमकती
राहों से जाने ओझल किये- अंधेरे कितने
आज भी सफर में, आगे - आगे हमारे
चलती मंजिलों दर मंजिलें चूमती
पापा - वह गोदी आपकी
जाने कितने तूफानों में
सुहानी नींद हमें सुलाए
आज भी मखमली तकिए सी
आराम का एहसास दिलाती
जब भी बदली दुश्चिंताओं की लहराती
पापा - वो बातें आपकी
कड़वी मीठी जो भी हों
मन को हमारे चहूं और घेरे रखती।
आज भी गुँजती कानों में
जब भी अधीर से इधर - उधर भटकते;
कानों में गूँजते चंद शब्द आपके-
सब दुविधायें पल में हर लेते
पापा - जो भी जीवन जीया आपने
हमारे लिए - इस परिवार के लिए,
हर सांसें आपकी - हर इच्छाएं आपकी,
हमें ही सवारतीं- हमें ही मजबूत करतीं।
जी रहे हैं हम जीवन आपका -
भोग रहे हैं हम श्रम आपका
पर कहाँ पूरी कर पाए - चाहे आप की
जितनी बड़ी गगरी - जल भी समोता उतना
सागर समान- अनंत आप।
जितनी हिम्मत - उतनी ही तय की दूरी
सफर कितना भी लंबा रहे
आज भी आप - गगनसदृश विशाल
नयन भर देख - मन को संभालते
आने वाले भविष्य को - इसी अनंत से
भरपूर लेने को प्रोत्साहित करते
बस यही चाहत हमारी -
एक हल्की झलक आपकी
इस भविष्य को -
हम सब में नजर जाये।

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