Sunday, April 21, 2019

नया घर



समय हो गया
नये घर जाने को-
कुछ देर निहोर लूं -बैठ
इस कमरे की फर्श पर 
सामान तो कब का
जा चुका यहां से
बस बिखरी पड़ी हैं
तो यादें
अरसा एक बीत गया
यह भी कभी - घर एक नया था
खुशबू अब तक समोई - जहन में
पर बदल गई - शायद वक्त के साथ।
जाने कितनी बार - इन दीवारों पर
झाड़े जालेपुताई की
कभी सीलन - छत पर जम जाती
कभी दीमक - लग जाती दरवाजों पर।
सब कुछ सवाँरता, सजाता
वक्त ही नहीं मिल पाया
सलीके से देखूँ इसे
अजनबी सा लग रहा -
हर कोना इसका
जब आया था यहां
कहां थी इतनी चहल - पहल
कुछ ही घर थे-इर्द गिर्द इसके
मैदान, गलियां, पेड़ों के झुंड
बस इन्हींमें गिरा बसा था
सबओझल हुए- समय के साथ
एक गली- मैदान पार करते
पहुंचाती थी घर तक
देखते - देखते बस्तियां इतनी बस गई
रास्ते कई निकल पड़े -
मैदानों जंगलों को पाटते
ढूँढते - भटकते पहुंच ही जाते
इस घर तक
कितना कुछ बदल गया
इस घर के अंदर - बाहर,
अनजान सा आया यहाँ
पर पूरी बस्ती उमर पड़ी - विदा करने।
नए घर का - दे रहे मशवरा
बताते मुझे - सिलसिलेवार
क्या सब करना वहां
जितने लोग - उतने अनुभव उनके।
दे रहे जो सब संजोया उन्होंने
अपने चिर - परिचितों का
संग देते ठिकाना -
कितने पहचान गए - मुझको
चंद समय की - रोज मुलाकातों में
फिर मिलने का, संपर्क बनाए रखने का
सबसे कर रहा मैं वादा
पर कहां मिल पाया उन सब से
धूमिल हो गए संपर्क सारे -
समय के साथ,
जब छोड़ पुराना घर - आया यहां
भूल जाएंगे ये सभी
जैसे भुला दिया मैंने उन सबको।
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18 March 2016

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